सबसे ऊंचा पर्वत पर / सुभाष चंद "रसिया"
सबसे ऊंचा पर्वत पर, मईया के दरबार बा।
सिंह सवारी हाथ कटारी, दुर्गा के अवतार बा।
शेरावाली मैहर वाली लोग तोहके कहेला।
नवरात्र में तोहरो मैया नव रूपवाशोभेला।
सबसे निराली जग में मैया महिमा अपार बा॥
सबसे ऊंचा पर्वत पर॥
चमचम चमके शीश पर मुकुट, मैया आज तोहार हो।
गरवा में मोतीयन के हरवा, पूरा बा शृंगार हो।
रण में जेक आल्हा के तरलू, लीला माई अपार बा॥
सबसे ऊंचा पर्वत पर॥
नरमुण्ड माला गरवा में मैया, खप्पर तोहरी हाथ बा।
चण्डी काली कामाख्या मैया तोहरो नाम बा।
महिसासुर के रण में तू मरलू भक्तन के ऊद्धार बा॥
सबसे ऊंचा पर्वत पर मैया के॥
कईसे के झुलनवा झुलिहे नीमिया गछिया आज हो।
छोटी मुकी मईया हमरी, आके बचईह लाज हो।
अपनी "रसिया" के बिगड़ी बनाद, तोहरी दुवरिया ठाढ़ बा॥
सबसे ऊंचा पर्वत पर॥