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सबसे खतरनाक समय / रूपा सिंह
Kavita Kosh से
सबसे खतरनाक समय शुरू हो रहा है
जब मैं कर लूँगी खुलेआम प्यार ।
निकल पडूँगी अर्धरात्रि दरवाज़े से
नदियों में औंटती, भीगती, अघाती
लौट आऊँगी अदृश्य दरवाज़े से
घनघोर भीतर ।
अब तक देखे थे जितने सपने
सबको बुहार कर करूँगी बाहर ।
सीझने दूँगी चूल्हे पर सारे तकाजों को
पकड़ से छूट गए पलों को
सजा लूँगी नई हाण्डी मैं
और कह दूँगी अपनी
कौंधती इन्द्रियों से
रहें वे हमेशा तैयार मासूम आहटों के लिए ।
आज दिग्विजय पर निकली हूँ मैं
स्त्रीत्व के सारे हथियार साथ लिए
सबसे ख़तरनाक समय शुरू हो रहा है
जब करने लगी हूँ मैं ख़ुद से ही प्यार ।