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सबाब गर नहीं मुमकिन तो कुछ अज़ाब करें / कांतिमोहन 'सोज़'
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सबाब गर नहीं मुमकिन तो कुछ अज़ाब करें ।
तक़ाज़ागीर जनूं का अभी हिसाब करें ।।
सुना है उसके यहाँ कुछ कमी है रौग़न की
शहीद अपना लहू नज़्रे-आफ़ताब करें ।
मुजाहिदीने-वफ़ा<ref>वफ़ा का योद्धा</ref> रात चढ़ती आती है
कहीं से आतिशे-गुमकर्दा<ref>आग जो खो गई थी</ref> दस्तयाब करें ।
सवाल एक नहीं सौ हैं और कठिन भी हैं
हमें क़बूल नहीं उसको लाजवाब करें ।
हमारे दिल में भी क़तरा हो नूर का शायद
उसे भी दे के उजाले को कामयाब करें ।
यहाँ तो दारो-रसन<ref>फाँसी का तख़्ता और फन्दा</ref> तेग़-ओ-सम<ref>ख़ंजर और ज़हऱ</ref> सभी कुछ है
खुली है छूट कि जो चाहे इन्तखाब करें ।
जनूने-सोज़ ने बुत को खुदा बनाया था
बज़िद हैं आज उसे खानुमांख़राब करें ।।
शब्दार्थ
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