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सबाहतें भी हैं क़ुर्बां वो सांवला पन है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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सबाहतें भी हैं क़ुर्बां वो सांवला-पन है
वो मेरा कृष्ण कन्हैया है मेरा काहन है

हवा के दोश पे उड़ता है आप का आंचल
उलझ गया है जो कांटों से मेरा दामन है
 
जवानी भंवरा है रस चूसती है फूलों का
जो पीछे तितलियों के दौड़ता है, बचपन है

दिलो-दिमाग़ मुनव्वर तुम्हारे ज़िक्र से हैं
तुम्हारी याद से दिल का चिराग़ रौशन है
 
तमाम शहर हिमाचल के हम ने देखे हैं
जो सब से बढ़ के हसीं है वो शहर 'नाहन` है

वो एक शायरेऱ्यकता, वो बे-ग़रज़ इंसां
बुरा किसी का नहीं सोचता ब्रहमन है

पठानकोट में रहते हैं इक ज़माना से
इसी के दम से हमारा भी नाम रौशन है

हर एक गोशा यहां शो`ला-बार है 'रहबर`
हमारा दिल है कि जलता हुआ कोई बन है