भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबेरा / जटाधर दुबे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छिटकलै पहिलेॅ-पहिलेॅ
सुरुजोॅ के पहिलोॅ किरण।

सुरुजोॅ के रथ रोॅ पहिया
आबेॅ निकली रहलोॅ छै
क्षितिज के तल से,
उषा अइली आगू बढ़ी केॅ
अभिनंदन करनेॅ नीज कर से।

हमरोॅ देश भारत जहाँ सुरुज रोॅ
सबसें पहिलोॅ किरण छिटकलोॅ छेलै,
वहूँ हाथ बढ़ैलकै आरो लै लेलकै आपनोॅ गोदी में
तब तांय अइलै रथ सुरुज के
उषा के मुँह लाजोॅ से लाल होय गेलै।

सुरज आबै छै, आदमी केॅ ई संदेश सुनाबै छै
जागोॅ, जागोॅ हे मनुख सिनी
कोय नै यै समय में सुतै छै,
बितलै रात, अन्हार भी भागलै
आपनोॅ काम आपनोॅ हाथोॅ से करो,
हे छात्र जगोॅ, पूछी लेॅ संसार ई
कठिन प्रश्न छेकै ई पूछोॅ गुरु सुरुज से।

सरंगोॅ के दीप केॅ बुझैनें
रात बितलोॅ चललोॅ जाय रहली छै,
द्वार सोनोॅ नांकी खुललै आरो
उषा रानी आबेॅ आबी रहली छै,
उषा के चुनरी छै सोनोॅ रोॅ
जेकरोॅ छाया पड़ै छै हमरा पवित्र हृदय पर।
चौंकेॅ, चौंकेॅ वें देखी रहलोॅ छै
कि पड़लोॅ छोॅ, केकरोॅ ई छाया
तोरोॅ तन-मन पर।

गुलाब रोॅ कोमल-कोमल कली सीनी भी
देखी रहलोॅ छै आपनोॅ मुँहोॅ के सुन्दरता केॅ,
झुकी केॅ ओस रोॅ दर्पण में,
सुन्नर-सुन्नर मुँह के नै तुलना वाला सुन्दरता केॅ।

आँख खालोॅ तेॅ, प्रिय के दर्शन होतौं
वियोग में भरलोॅ कमल दल ने,
आपनोॅ विरह आग के ई बात बतैलकै
जलेॅ लागलै कुमुदिनी सुन्दरी भी।

जागोॅ हे मनुख,
काम करोॅ तोंय
नै छै कहीं रात रोॅ देवी के राज
जों सुतभेॅ तेॅ आबेॅ तोंय निश्चितेॅ
खोय देभेॅ सुख रोॅ सौसे टा सम्राज्य।