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सब्ज़ी वाली बुढ़िया / त्रिलोचन

मेथी और पालक की
दो-दो हरी गट्ठियाँ
लस्सन और प्याज़ की
चार-चार पोटियाँ
बुढ़िया कह रही थी
ग्राहक से-
ले लो
यह सब
ले लो
कुल पचास पैसे में

ग्राहक बोला-
जो कुछ लेना था
ले चुका
यह सब क्या करूँगा
रखने की चीज़ नहीं

बुढ़िया ने साँस ली
और कहा-
दिन हैं ये ठंड के
ले लो
तो मैं भी घर को जाऊँ

ग्राहक ने सुना नहीं
और दाम चुका कर
चला गया

मैं पास वाले से
गोभी ले रहा था
बुढ़िया से मैंने कहा-
अम्मा, सारी चीज़ें
इकट्ठे बाँध कर
मुझ को दे दीजिए

बुढ़िया असीसती हुई
चली गई

मुझ को मालूम नहीं
वह बुढ़िया कौन है
और कहाँ रहती है
उस के आगे पीछे
कोई और है कि नहीं

लेकिन उसकी बातें
जो कानों में पड़ीं
उन को अनसुना
कर नहीं पाया मैं

रचनाकाल : 29-11-82, पटना