भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएँगे / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएँगे
उजले फर के कोट पहने हल्के जाड़े आएँगे

गीले-गीले मंदिरों में बाल खोले देवियाँ
सोचती हैं उनके सूरज देवता कब आएँगे

सुर्ख नीले चाँद-तारे दौड़ते हैं बर्फ़ पर
कल हमारी तरह ये भी धुंध में खो जाएँगे

दिन में दफ़्तर की कलम मिल की मशीनें सब हैं हम
रात आएगी तो पलकों पे सितारे आएँगे

दिल के इन बागी फ़रिश्तों को सड़क पर जाने दो
बच गए तो शाम तक घर लौटकर आ जाएँगे