सब्भे कुछ भूली गेला / अमरेन्द्र
हमरा की-की तोहें देतियौ, छोड़ोॅॅ घूरी केॅ तेॅ ऐतियौ
तोहें दिल्ली जैत्हैं सब्भे कुछ भूली गेला ।
तोहरोॅ भाषण धुआंधार, ‘सब केॅॅ जीयै के अधिकार’
तोहें दिल्ली जैत्हैं सभ्भे कुछ भूली गेला ।
‘सब केॅ रोजी रोटी घोॅर, सभ्भे होतै सुख सें तोॅर’
तोहें दिल्ली जैत्हैं सब्भे कुछ भूली गेला ।
हमरोॅ घर के बुरा हाल, तोहें आपने लेॅ बेहाल
तोहें दिल्ली जैत्हैं सब्भे कुछ भूली गेला ।
हमरोॅ गोड़ पकड़बोॅ रोबोॅ, आपनोॅ वोटो लेॅ घिघयैबोॅ
तोहें दिल्ली जैत्हैं सब्भे कुछ भूली गेला ।
केना तोहरा पर पतियैथौं, तोहें जुतयैबौ, जुतयैथौ
तोहें दिल्ली जैत्हैं सब्भे कुछ भूली गेला ।