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सब-कुछ / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
फुटपाथ का बसेरा ही अच्छा
घरों की मारामारी से
जहां लोकेशन मिलती है
मेन बाजार
चौराहा-डाकघर
सिनेमा-डिस्पेंसरी, बिजली-पानी
किराया-नाममात्रका
दस-पांच की दिहाड़ी
सारे पड़ोसी एक समान
सिविल लाइंस
सब बराबर
कोई कुछ भी करे
सब चलता है।