Last modified on 26 फ़रवरी 2013, at 07:26

सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं / 'असअद' बदायुनी

सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं
अजीब लोग हैं दीवाने होना चाहते हैं

न जाने किस लिए ख़ुशियों से भर चुके हैं दिल
मकान अब ये अज़ा-ख़ाने होना चाहते हैं

वो बस्तियाँ के जहाँ फूल हैं दरीचों में
इसी नवाह में वीराने होना चाहते हैं

तकल्लुफ़ात की नज़मों का सिलसिला है सिवा
तअल्लुक़ात अब अफ़साने होना चाहते हैं

जुनूँ का ज़ोम भी रखते हैं अपने ज़ेहन में हम
पड़े जो वक़्त तो फ़रज़ाने होना चाहते हैं