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सब ओलंपिक जीत लिये हैं / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मम्मी किसको डाले दाने,
चिड़ियों के अब नहीं ठिकाने|
पितृ पक्ष में पापा कहते,
कौये जाने कहां रमाने|
तरस गईं हैं कब से दादी,
नील कंठ के दर्शन पाने|
मुर्गे अब तैयार नहीं हैं,
सुबह सुबह से बांग लगाने|
नहीं दिख रहे अब कठ फोड़े,
कहां चले गये हैं न जाने|
था गरीब का भोजन कोदों,
दुर्लभ हैं अब उसके दाने|
पापा कितने पैदल चलते,
मां से पूछा है दादा ने|
रोटी पर अधिकार जमाया,
चीज़ और वर्गर पिज्जा ने|
सब ओलंपिक जीत लिये हैं,
बेशर्मी और लाज हया ने|