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सब का यही बयान था / रोशन लाल 'रौशन'

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सब का यही बयान था होगी किसी की लाश
पहचान ही न पाया कोई जि़न्दगी की लाश

बुनते रहे हैं अतलसो-कमख़ाब जिसके हाथ
महरूम एक तारे-कफ़न से उसी की लाश

कोई सुराग कोई निशां तक नहीं मिला
दुख की नदी में डूब गयी यूं खुशी की लाश

हर शख़्स खुद गरज है तो हर बात मस्लेहत
क्या दफन हो चुकी है दिलों में खुदी की लाश

‘रौशन’ पड़े हुए हैं वतन में हम इस तरह
परदेस में हो जैसे किसी अजनबी की लाश