सब कुछ दे दूँगा पर / विमल कुमार
सब कुछ दे दूँगा मैं
आपको
अपनी घड़ी
अपनी सायकिल
अपना हारमोनियम
अपनी किताबें, कलम, कॉपी, पेंसिल और रबर तथा कटर भी,
यहाँ तक कि गटर भी
पर मैं इस्तीफा नहीं दूँगा
आप कहेंगे तो अपनी सारी जमीन जायदाद
आपको नाम कर दूँगा
लिख दूँगा अपनी वसीयत
दे दूँगा आपको अमृतसर की पुश्तैनी कोठी
बाप-दादों की हवेली
नवी मुंबई का फ्लैट
गुडगाँव का फार्म हाऊस
पंचकूला का प्लॉट
पर मैं इस्तीफा नहीं दूँगा
अगर मौसम अच्छा होता
अगर गर्मी थोड़ी कम होती
अगर फसल इस बार अच्छी होती
अगर आपके बदन से खुशबू आती
तो मैं जरूर इस्तीफा दे देता
आप कितनी मामूली सी चीज माँग रहे हैं
यह आपने कभी सोचा है
मैंने कितनों को लैपटॉप दिया
कितनों को एप्पल का टैबलेट, किसानों को ऋण
गरीबों को आश्वासन
तो फिर इस्तीफा क्या चीज है
मेरे लिए
अपना दिल और दिमाग
जब मैंने दे दिया
जिसको देना था
और उसके लिए पूरी दुनिया में बदनाम भी हुआ
तो इस्तीफा देने से मैं क्यों कतराता
पर यूँ ही खामव्वाह
बिना किसी बात के
महज चंद एलोकेशन के लिए
मैं इस्तीफा क्यों दूँ
अगर जल बोर्ड के अध्यक्ष पद से कभी इस्तीफा दिया होता
तो जरूर आज मैं इस्तीफा देता
कोई अनुभव नहीं है जब मुझे
इस्तीफा देने का
तो मैं क्यों देता इस्तीफा
अगर नैतिकता का सवाल आप नहीं उठाते
तो मैं कब का इस्तीफा दे देता
पर मैंने भी ठान लिया है
इस्तीफा नहीं दूँगा
भले ही मैं अपने घर की खिड़कियाँ
दरवाजे दे दूँ
बाथ टब दे दूँ आपको
दीवान और डाइनिंग टेबल दे दूँ आपको
पर क्यों दूँ इस्तीफा
एक नजीर बनाने के लिए
अगर आप कहें तो मैं इतने पासवर्ड दे सकता हूँ आपको
बैंक एकाऊंट और पैन नंबर
यहाँ तक कि स्विस बैंक का भी नंबर
पर सवाल है जिन लोगों ने इस्तीफे दिए अब तक
उन्हें इतिहास भी याद नहीं करना
किसी चैनल पर भी नहीं पूछा जाता
रेल दुर्घटना पर अब से पहले किस ने दिया था इस्तीफा
तो फिर मेरे मरने के बाद
किस क्विज में पूछा जाएगा
कि मैंने कभी दिया था इस्तीफा
इसलिए मैं नहीं दूँगा इस्तीफा कभी
क्योंकि जब मैं नहीं दूँगा
तभी आप भी याद करेंगे मुझे
कि एक शख्स ने बार-बार
माँगे जाने पर भी नहीं दिया था इस्तीफा
जबकि वह सब कुछ देने को तैयार था
अपना दीन-ईमान
अपनी इज्जत, आबरू
अपनी भाषा अपनी लिपि
जब एक आदमी ने
दे दिया इतना सर्वस्व जीवन
समर्पित कर दिया खुद को राष्ट्र को
होम कर दिया
तो आप उससे
इस तरह इस्तीफा क्यों माँग रहे हैं
माफ कीजिएगा
इतनी छोटी सी चीज मैं क्यों देता किसी को
मैंने अखबारनवीसों को भी दिया है जब भी
तो कम से एक अँगूठी जरूर दी है
देवियो और सज्जनो
मैं इस देश को नई दिशा दूँगा
पर इस्तीफा नहीं दूँगा