भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सब कुछ बचाया जा रहा / विजय सिंह नाहटा
Kavita Kosh से
सब कुछ बचाया जा रहा
जल, जंगल औ' ज़मीन
ताजा हवा;
आने वाले कल के लिए दाय में
एक साफ़ सुथरी धरती
किसी अदेखे डर के खिलाफ बचाया जा रहा
लङाई का हुनर
बचाया जा रहा अन्न
अकाल के लिए
एक कार्य योजना बचाई जा रही
आकस्मिक आपदा से निपटने
कुछ सपने बचाये जा रहे
आनन फानन ही सही
संभावित भूखे लोगों के लिए
हर तरफ़ अंतहीन दौड़ है बचाने की
या फिर;
इस आपाधापी में किस कदर
ख़ुद बचे रह पाने की बेचैनी
चीजों औ' चीखों से ठसाठस भरी इस दुनिया में
चाहता हूँ;
बस, बचा रहे थोड़ा सा प्रेम
विकट समय के लिए।