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सब कुछ सीखा हमने / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
सबकुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी
सच है दुनियावालों के हम हैं अनाड़ी
दुनिया ने कितना समझाया
कौन है अपना कौन पराया
फिर भी दिल की चोट छुपाकर
हमने आपका दिल बहलाया
ख़ुद ही मर मिटने की ये ज़िद है हमारी
दिल का चमन उजडते देखा
प्यार का रँग उतरते देखा
हमने हर जीनेवाले को
धन-दौलत पे मरते देखा
दिल पे मरनेवाले मरेंगे भिखारी
असली नक़ली चेहरे देखे
दिल पे सौ-सौ पहरे देखे
मेरे दुखते दिल से पूछो
क्या-क्या ख़्वाब सुनहरे देखे
टूटा जिस तारे पे नज़र थी हमारी