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सब कुछ होते हुए भी थोडी बेचैनी है / कुमार विनोद

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सब कुछ होते हुए भी थोडी बेचैनी है
शायद मुझमे इच्छाओं की एक नदी है

कहीं पे भी जब कोई बच्चा मुस्काया है
फूलों के संग तितली भी तो खूब हंसी है

गर्माहट काफूर हो गयी है रिश्तों से
रगों मे जैसे शायद कोई बर्फ जमी है

सतरंगी सपनो की दुनिया मे तुम आकर
जब भी मुझको छू लेती हो ग़ज़ल हुयी है