भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब कुछ / पुष्पिता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप
निचोड़ लेती है
देह के रक्त से पसीना।

माटी के बीज
बीज से पत्ते
पत्ते से वृक्ष
और वृक्ष से
निकलवा लेती है धूप
सब कुछ।

धूप
सब कुछ सहेज लेती है
धरती से
उसका सर्वस्व
और सौंप देती है प्रतिदान में
अपना अविरल स्वर्णताप
कि जैसे
प्रणय का हो यह अपना
विलक्षण अपनापन।