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सब के सब असाधारण रूप से शान्त हैं / अवधेश कुमार
Kavita Kosh से
एक जटिल कॉमेडी के विकट दुखान्त में
यानी पटाक्षेप के बाद
शुरू करते हुए असली नाटक
सब के सब असाधारण रूप से शान्त हैं :
द्रुत से फिर विलम्बित हो गई है
लय पार्श्व-संगीत की
क्लाइमेक्स से
नीचे उतर रही है घटना;
घुटनों
के
बल
एण्टीक्लाइमेक्स में
नाटक का आरम्भ
फिर दर्शकों के बीच से होगा; फिर
ढूँढ़ा जाएगा एक विदूषक
जो इस भीड़ को जनता कहकर
सम्बोधित करेगा; और सरलता
से अधिनायक बन जाएगा ।
फिर असाधारण रूप से शान्त
सब के सब
साधारण रूप से चीख़ने लगेंगे ।
घटना चढ़ने लगेगी क्लाइमेक्स पर
पार्श्वसंगीत की लय
विलम्बित से द्रुत हो जाएगी,
पटाक्षेप से पूर्व ही होगा असली
नाटक !
यानी
एक जटिल त्रासदी में
अन्तर्निहित होगी
एक शाश्वत कॉमेडी !