भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सब झूठ / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
राव राना जिते शाह पतिशाह ते, झूठ के फन्द नहि कोहु बाँचे।
झूठ पण्डित कहै, कव्वि झूठी चहै, और को निर्वहै पिंड काँचे॥
भेस रचि पचिया झूठ नहि बाचिया, दैखि परपंच मन मग्न नाचे।
झूठ संसार व्यवहार धरनी कहै, जक्तमें कोइ कोइ भक्त साँचे॥7॥