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सब डरते हैं / शरद बिलौरे
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ठण्डी गर्मी वर्षा
सबने पूरी-पूरी जी
सबने बोई धान
सभी ने काटी।
सिर पर गमछा बाँढ
खेत में
सबने अपनी-अपनी फसलें नापीं
सबकी पैदावार कम हुई
जी भर कर सबने
चिड़ियों को कोसा।
हलवाहे-चरवाहे को
सबने लापरवाह बताया
ढोर-डाँगरों को
सबने ग़ाली दी।
साहूकार लाला
जब खाली बोरे लेकर आया
सब खड़े हुए
सबने राम-राम की
एक दाने के लिए
नन्ही चिड़िया को
सबने हाथ हिलाकर भगाया।
सब डरते हैं।