सब बन्द खिड़कियाँ न कोई दर खुला मिला
बहती हवा का भी न हमें फ़ायदा मिला
जो जिंदगी को जीते रहे मौत की तरह
उन को ग़मो का रोज़ नया सिलसिला मिला
हमको तलाश दोस्त की भटकाये दर ब दर
दुश्मन बना जो शख़्स वही बारहा मिला
मस्जिद में जा के रोज़ पुकारा किये हैं जो
कोई हमे बताये उन्हें कब ख़ुदा मिला
है खुशबुओं की चाह औ गुलशन अजीज़ भी
लेकिन करें क्या गुल न कहीं भी खिला मिला
गलियों में भटकते न कभी खुद से मिल सके
हमको तो हर बशर है यहाँ गुमशुदा मिला
निभती न दोस्ती है किसी एक शख़्स से
अंदाज़ भी यहाँ तो सभी का जुदा मिला
आयी हैं आँधियाँ फँसी दरिया में कश्तियाँ
पतवार भी नहीं न हमे नाखुदा मिला
मजबूरियों के अक्स तो शीशे में नक्श हैं
अपनी अना दिखे न वही आईना मिला