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सब बेगाने / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
अपना नहीं रहा कोई अपना-सा
इस संसार में
सब बेगाने लगते हैं
खुशियां भर तलाश रहे
हम उद्यानों में
घर की बगिया उदास है
तुलसी का पौधा मायूस है
सुस्त है
बगल का मनीप्लांट
खामोश है सुस्त है
उसको भी तो
चाहिए आपका दुलार
प्यार और स्नेह
लेकिन एक आप हैं
जो तलाश रहे हैं बाहर
जहां कुछ नहीं
कुछ खास
और यही है आपको
उम्मीद और विश्वास
देखें कर पाते हैं