सब याद है / प्रशान्त 'बेबार'
सब याद है! हाँ, मुझे सब याद है
अभी कल की सी तो बात है।
माँ की रसोई में सौंफ़ का छौंक
भाई ने मारी साइकिल की रौंद
पापा के हाथ के हलवे की मिठास
और वो आई क्या ? कब से रक्खी आस
याद है मुझे, बैठक के कोने में
एक बेंत खड़ा किया था
बैंजो का तार टूट न जाए,
चचा ने छूने से मना किया था
याद है कि,
दरवाज़ा जब भी बाहर खोलो
अजीब सी चूँ-चूँ करता था
आँधी में जब लट्टू हिलता
मन अंदर अंदर डरता था
सब याद है, बस याद नहीं कि
रात के बाद, फिर कैसे रात हुई
अभी तो खाना खाया ही था
क्यूँ भूख लगने सी बात हुई
इक औरत रोज़ यहाँ आ जाती है
या शायद घर में ही रहती है
किसी की राह तकती रहती है
कहीं देखी देखी सी लगती है
मुझे कुछ कुछ तो ध्यान है मगर
ठीक से पूरा याद नहीं कि
सुबह वाली गोली 'अल्ज़ाइमर' की
खायी थी या रह गयी।