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सब लोके कय लालन कि जात संसारे (बाउल) / बांग्ला
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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सब लोके कय लालन कि जात संसारे
लालन कय, जेतेर कि रूप, देखलाम ना ए नजरे।।
छुन्नत दिले हये मुसलमान,
नारी लोकेर कि हय विधान?
वामन यिनि पैतार प्रमाण
वामनि चिनी कि धरे।।
केओ माला, केओ तसबि गलाय,
जाइते कि जात भिन्न बलाय
जेतोर चिह्न रय कार रे।।
गर्ते गेले कू पजल कय,
गंगाय गेले गंगाजल हय,
मूले एक जल, से ये भिन्न नय
भिन्न जानाय पात्र- अनुसारे।
जगत बेड़े जेतेर कथा
लोके गौरव करे यथा तथा,
लालन से जेतेर फाता
बिकियेछे सात बजारे।।