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सब लोग साथ-साथ हैं तन्हा खड़ा हूँ मैं / ज्ञान प्रकाश विवेक
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सब लोग साथ -साथ हैं तन्हा खड़ा हूँ मैं
जैसे कि आदमी नहीं इक हादसा हूँ मैं
कल रात मैंने तेरी चुराई थी कहकशाँ
आकाश,आज तुझसे बहुत डर रहा हूँ मैं
ये इन्तहा-ए-शौक़ है या फिर मेरा जुनून
कमरे में अपने आपसे छुपकर खड़ा हूँ मैं
पहने हैं आज कपड़े नए मुद्दतों के बाद
बच्चों की सिम्त आज मचलने लगा हूँ मैं
हैरान हो के देख रही है मुझे हयात
मक़्तल पे आज कितना अधिक हँस रहा हूँ मैं
मेरा जुनून और ये पानी की जुस्तजू-
मिट्टी को अपने नाखुनों से खोदता हूँ मैं
लगता है जैसे कोई तपस्वी हो तप में लीन
उम्रे-दराज़ पेड़ को जब देखता हूँ मैं.