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सब समझते हैं क्या ज़रूरी था / विनय कुमार
Kavita Kosh से
सब समझते हैं क्या ज़रूरी था।
तख़्त तक रास्ता ज़रूरी था।
राह तो थी सड़क बनानी थी
यह धमाका बड़ा ज़रूरी था।
चोटियों पर जगह की क़िल्लत है
रास्ते में खुदा ज़रूरी था।
ज़िंदगी बन गयी मिटाने में
प्यार में फ़ासला ज़रूरी था।
ज़र्रा-ज़र्रा पहाड़ हो जाता
हाथ में हौसला ज़रूरी था।
ज़ख्म लेने थे ज़ख्म देने थे
आमना सामना ज़रूरी था।
चांदनी में गुरूर घुल जाता
झील का आईना ज़रूरी था।