भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब हमारे पक्ष में हैं / नंद चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम्हारे हाथ अभी थके नहीं हैं
यह कहने का सुख ही
इस कविता का कथ्य है
थोड़े से दिन और हैं
सहने के
फैलाने के लिए ये हाथ नहीं हैं

निर्द्वन्द्व रहो
यह जंगल नहीं है
न होने दें इसे जंगल
नहीं यहाँ नहीं रूकेगी
कोई भी नहीं
इस प्रवाह का
इस चकित कर देनी वाली
यात्रा का सुख ही
इस कविता का कथ्य है

किसी को तो छोड़ना ही पड़ेगा
छोड़ना ही पड़ेगा यह सुख
इस नये पत्ते पर इस धुंध में
बूँद तो है
सूर्य के भाग्य में यह सुख नहीं है

छिन्न-भिन्न हुआ मन
लौटता है पीछे
पीछे कुछ नहीं है
सन्नाटा है
डर है

डरो मत
यहाँ दूब है और छोटी चिड़िया
छोटे लोगों को क्या डर है ?
क्या डर है भाग्य के मारे लोगों को ?

यह शताब्दी क्रुर लोगों की है
लेकिन हमारी भी है
यह युद्ध है
खड़े रहो

कोई पाप आकस्मिक नहीं होता
तुमने होने दिया तो हुआ
सिर्फ इच्छाओं से रास्ते बदलते नहीं है

सत्ता की हार-जीत
यह दुःख
हमारा नहीं
युद्धरत रहो
जिसे बदलना है
बदलेगा

ये वपस्पतियाँ जलेंगी नहीं
न यह कृति अनुर्वरा होगी
अब की बार पकड़ लें
हवा, बादल
और भविष्य
सब हमारे पक्ष में हैं।