भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सब हम्मीं / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
हे पिया!
हमरे आँखी के बरसबॅ देखी केॅ
सावन नें बरसना छोड़ी देलेॅ छै
यहेॅ कारण छेकै
कि नै बरस छै आबेॅ
ई सौनॅ के मेघ।
सुखले रहले ई सौंसे सॉन
आरो ई जे कखनु-कखनु
चान्द झॅपाय जाय छै मेघॅ सें
जानै छॅ पिया!
ई हमरे आँखी के बहलॅ काजर छेकै
आरो हमरे बिखरलॅ केश।
जों मेघ रहतियै तेॅ
बरसतियै नै?