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सभका बीच सभकर सहयोगी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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सभका बीच, सभकर सहयोगी बनके
जहाँ तूं विहर रहल बाड़ऽ
उहईं होई तहरा साथे हमरो सहयोग।
ना वन में, ना विजन में,
ना मन का एकांत कोना में
अइसन जगही तहरा से भेंट ना होई
जहाँ तूं सभकर आपन बनके रहबऽ
उहईं हमरो आपन बनबऽ
जहाँ तूं सभका से भेंटे खातिर
आपन बाँह पसरबऽ
उहईं हमरो हृदय में
तहरा खातिर प्रेम जागी।
ऊ प्रेम, घर का अंहार कोना में नाबइठी।
ऊ त आलोक लेखा सगरो छितरा जाई।
तूं सभकर आनंद धन हउवऽ
एही से हमरो आनंद धन हउवऽ
सबका एक समान भइले का वजह से
तहरा प्रेम में अमरता बा।