मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सभवा बइठले रउरा<ref>आप</ref> बाबू हो कवन बाबू।
कहवाँ से अइले पंडितवा, चउका<ref>किसी शुभ कार्य का वह स्थान, जहाँ कर्त्ता बैठकर संस्कार विधि सम्पन्न करता है। उस स्थान को गोबर या मिट्टी से लीपकर उस पर ऐपन आदि की लकीरों से चौकोर अल्पना बना दी जाती है। तिलक में इसी चौके पर बैठाकर दुलहे का तिलक सम्पन्न होता है।</ref> सभ घेरि ले ले॥1॥
दमड़ी दोकड़ा के पान-कसइली।
बाबू लछ<ref>लाख</ref> रुपइया के दुलहा, बराम्हन भँडुआ ठगि ले ले॥2॥
बाबू, लछ रुपइया के दुलहा, ससुर भँडुआ ठगि ले ले॥3
शब्दार्थ
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