प्रस्तुत गीत में बरुआ अपने दादा-दादी, चाचा-चाची से जनेऊ की विधि कैसे संपन्न होगी, इसकी जिज्ञासा करता है। पंडित को बुलाकर शुभलग्न दिखलाकर जनेऊ कराने, मंडप छवाने, पुरहर बैठाने, दीप जलाने, घी ढरकाने, मुंडन कराने और सखी-सहेलियों को बुलाकर सारी विधि संपन्न कराने का उसे आश्वासन मिलता है। उपनयन में ये सारी विधियाँ संपन्न होती हैं।
सभहाँ<ref>सभा में</ref> बैठल तोहें बाबा हो बड़का बाबा, कौने बिधि होयत जनेउआ हो॥1॥
बभना बोलैबौं<ref>बुलवाऊँगा</ref> रे बबुआ, पोथिया देखैबौं हे।
दिनमा गुनायब, भल भाँति होयत जनेउआ हो।
मचिया बैठल तोहें दादी हे अहियब<ref>सौभाग्यवती</ref> दादी, कौने भाँति होयत जनेउआ हे॥2॥
ऐंगना<ref>आँगन में</ref> निपैबै<ref>लिपवाऊँगी</ref> रे बरुआ, मड़बा छरायब<ref>छवाऊँगी</ref>, पुरहर<ref>कलश के ऊपर रखा जाने वाला पूर्णपात्र, जिसमें अरवा चावल या जौ भरा जाता है</ref> बैठायब दिअरा जरायब<ref>जड़वाऊँगी</ref> हे।
घिया<ref>घी</ref> ढरकायब<ref>ढलकाऊँगी, ढालूँगी</ref>, भल बिधि होएत जनेउआ हे॥3॥
सभहाँ बैठल तोहें चाचा हो आपन चाचा, कौने बिधि होयत जनेउआ हे।
हजमा बोलैबै रे बरुआ, नेवता पठायब, सोना के आरे“ खुरबा<ref>उस्तुरा</ref> बनायब हे।
मुड़न करायब, भल भाँति होयत जनेउआ हे॥4॥
मचियाँ बैठल तोहें चाची हे अहियब चाची, कौने बिधि होयत जनेउआ हे।
दस पाँच आरे बरुआ, अहियब बोलायब हे।
मँगल गबायब, बजना बजबायब, भल भाँति होयत जनेउआ हे॥5॥