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सभाओं में संभल कर बोलते हैं / रोशन लाल 'रौशन'

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सभाओं में संभल कर बोलते हैं
मगर सच क्या है घर पर बोलते हैं

न खुलते हैं न खुल कर बोलते हैं
मगर दावा है मुँह पर बोलते हैं

ब-बातिन कोसते रहते हैं सबको
ब-ज़ाहिर लोग हँस कर बोलते हैं

ग़ज़ल के फ़न से वाकिफ़ भी नहीं हैं
मगर ख़ुद को सुखनवर बोलते हैं

समुन्दर देख लें तो डूब जाएँ
जो पोखर को समुन्दर बोलते हैं

वही हैं सच के पैरोकार 'रौशन'
वही जो झूठ अक्सर बोलते हैं