भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सभी अलग-थलग / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
सारी शक्तियों की होती हैं आंखें
अनन्त आंखें।
और विचरण करता हुआ समुद्र
नहीं होता अकेला
जितने प्राणी उसमें सारे
उतनी उसकी नसें
सभी के सहारे वह चलता है
फिर कैसे वह रुक पायेगा
और देखेगा मुझे ठहरकर।
- ये पक्षी उड़ते हैं आसमान में
अपने दो पंख किनारों पर रखकर
किंतु आंखें होती हैं उनकी मेरी और
और मैं सबकी तरह
आंख बिना मिलाये उनसे
एक अनजानी खोज में बढ़ता हूं,
सभी अलग-थलग।