भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सभी कुछ है तेरा दिया हुआ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
सभी कुछ है तेरा दिया हुआ, सभी राहतें सभी कुलफतें
कभी सोहबतें, कभी फुरक़तें, कभी दूरियां, कभी क़ुर्बतें
ये सुखन जो हम ने रक़म किये, ये हैं सब वरक़ तेरी याद के
कोई लम्हा सुबहे-विसाल का, कोई शामे-हिज़्र कि मुद्दतें
जो तुम्हारी मान ले नासेहा, तो रहेगा दामने-दिल में क्या
न किसी अदू की अदावतें, न किसी सनम कि मुरव्वतें
चलो आओ तुम को दिखायें हम, जो बचा है मक़तले-शहर में
ये मज़ार अहले-सफा के हैं, ये अहले-सिदक़ की तुर्बतें
मेरी जान आज क ग़म न कर, के न जाने कातिबे-वक़्त ने
किसी अपने कल मे भी भूलकर, कहीं लिख रही हो मस्सरतें