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सभी को समय ने सताया जहाँ में / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सभी को भी समय ने सताया जहाँ में।
हँसाया कभी तो रुलाया जहाँ में॥
नहीं जानता वक्त करना मुरव्वत
गया है इसे क्यों बुलाया जहाँ में॥
जिसे कोई खंजर नहीं ढूंढ पाया
पड़ा दिल वही चोट खाया जहाँ में॥
झलक एक पानी को बेचैन नजरें
मगर साँवरा ही न आया जहाँ में॥
गगन में हैं टुकड़े बहुत बादलों के
बरसता हुआ घन न पाया जहाँ में॥
कई रास्ते हैं भुलावे अनेक
सही मार्ग किसने दिखाया जहाँ में॥
बड़ी ज़िन्दगी खेल शतरंज का है
नया दाँव सब ने लगाया जहाँ में॥