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सभी तो लड़ते हैं / केदारनाथ अग्रवाल

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सभी तो
लड़ते हैं
लड़ाइयाँ
अस्तित्व की
व्यक्तित्व की
अभिव्यक्ति की
इससे
उससे
हमसे
तुमसे
शब्द
और अशब्द से
अर्थ और अनर्थ से
तुरीय
और सुषुप्ति से
आदमी होने के लिए
अमर्त्य
जीने के लिए।

रचनाकाल: २७-०१-१९८०