सभी नाश पथ पर गमन कर रहे हैं।
बुरी नीतियों को नमन कर रहे हैं॥
किया है प्रदूषित स्वयं नीर गंगा
उसी नीर का आचमन कर रहे हैं॥
शिकायत किसी से करें भी तो क्या हम
मिली पीर जो वह सहन कर रहे हैं॥
मिलाया हवा में जहर है जो हमने
स्वयं को धरा में दफ़न कर रहे हैं॥
रुको वृक्ष पर मत चलाओ कुल्हाड़ी
यही श्वांस सब की वहन कर रहे हैं॥
बसेरा उजाड़ो न इन पंछियों का
छिपे घोसलों में शयन कर रहे हैं॥
न इंसानियत की रही फिक्र इनको
लिये नोट अपना कफन कर रहे हैं॥