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सभी बताया करते झूठा यह संसार नहीं है / रंजना वर्मा

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सभी बताया करते झूठा, यह संसार नहीं है ।
इस बहती मनभावन नदिया, में मझधार नहीं है।।

दण्ड सरल है देना यदि हो, कोई भी अपराधी
किन्तु क्षमा कर देना भी तो, कम उपकार नहीं है।।

नित्य बहा करती हैं नदियाँ, लेकर निर्मल पानी
किन्तु सुरसरी जैसी कोई, भी जलधार नहीं है।।

आँगन में बिखराये किसने, हैं नफरत के दाने
इन बीजों से तो धरती पर, उगता प्यार नहीं है।।

नौका अगर सिंधु में डाली, तो पतवार सँभालो
नैया वही डूबती जिस का, खेवनहार नहीं है।।

सही न जाये पीड़ा मन की, टेरो मनमोहन को
आर्त्त हृदय से निकली सुनता, कौन पुकार नहीं है।।

आज पुनः वसुधा पुकारती, आ जा कृष्ण कन्हैया
गीता को फिर आज सुनाना, क्या स्वीकार नहीं है।।