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सभी मलेंगे कुंकुम रोली / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
सबने कर ली
एक-एक कर
फागुन की पूरी तैयारी।
बच पायेगा नहीं कहीं भी
बिना नहाये कोई कोना,
सब रंगों से सरोबर हो
बन जायेगा खूब सलोना,
लाल, गुलाबी,
नीली, पीली,
हो जायेगी हर गलियारी।
धूम मचेगा, रंग जमेगा
ढोल-मजीरे खूब बजेंगे,
बंदर, भालू, गीदड़, चीतल
नये रूप में सभी सजेंगे,
नहलायेगी
हरे रंग से
हाथी की मोटी पिचकारी।
सब मारेंगे सिंहराज को
छिपकर रंग भरे गुब्बारे,
पहले कौआ, फिर गौरेया
फिर पंछी सारे के सारे,
सभी मलेंगे
कुंकुम-रोली
इक-दूजे को बारी-बारी।