सभी साथ मिलकर हटाये न पत्थर।
मुसाफिर न समझे खुदा और ईश्वर।।
बहुत है बुराई मगर आदमी हूँ।
भुलाना नहीं तुम गले से लगाकर।।
कभी दुश्मनी से चिता मत जलाओ।
खुदा ने बनाया न जाना मिटाकर।।
चले जा रहे हम किनारे-किनारे।
हवा ले न जाये नदी में बहाकर।।
ज़रा देख लेना हवा को नज़र से।
कहीं ले न जाये हमें वह उड़ाकर।।
लगातार चलना, यही ज़िन्दगी है।
मिले जब किसी से सभी गम भुलाकर।।