सभी सुख दूर से गुजरें / हरीश भादानी
सभी दुख दूर से गुजरें गुजरते ही चले जाएँ
मगर पीड़ा उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुजरें...
हमारा घर धूप में छाँव की क्या बात जानें हम
अभी तक तो अकेले ही चले क्या साथ जानें हम
बता दें क्या घुटन की घाटियाँ कैसी लगीं हमको
रूदा नंगा रहा आकाश क्या बरसात जानें हम
बहारें दूर से गुजरें गुजरती ही चली जाएं
मगर पतझड़ उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुजरें...
अटारी को घटा से किस तरह आवाज दे दें हम
मेंहदिया पाँव को क्यों दूर का अन्दाज दे दें हम
चले श्मशान की देहरी नहीं है साथ की संज्ञा
बरफ के एक बुत को आस्था की आँच क्यों दें हम
हमें अपने सभी बिसरें बिसरते ही चले जाएं
मगर सुधियां उमर भर साथ चलने को उतारू हैं
सभी दुख दूर से गुजरें...
सुखों की आँख से तो बाँचना आता नहीं हमको
सुखों की साख से आंकना आता नहीं हमको
चलें चलते रहें उमर भर हम पीर की राहें
सुखों की लाज से तो ढाँपना आता नहीं हमको
निहारें दूर से गुजरें, गुजरते ही चले जाएं
मगर अनबन उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुजरें...