सभुआ बैठल तोहें दसरथ बाबा हो / अंगिका लोकगीत
बच्चे के सिर के बाल बड़े-बड़े हो गये हैं। वह अपने घरवालों को मुंडन कराने के लिए कहता है। सभी आश्वासन देते हैं कि अभी तो तुम अपने बालों को सँभालकर बाँध लो। उपयुक्त समय और शुभ लग्न के आने पर तुम्हारा मुंडन करवा दिया जायगा।
ऐसी प्रथा प्रचलित है कि सिर के बाल मुंडन के पहले नहीं कटवाये जाते हैं। कहीं-कहीं ऐसा भी होता है कि मुंडन के बाद ही उस्तरे से सिर के बाल काटे जाते हैं।
सभुआ<ref>सभा में</ref> बैठल तोहें, दसरथ बाबा हो।
बाबा, लुपची<ref>वह बाल, जो ललाट पर आ जाता है</ref> छेंकल<ref>छेंक लिया है; घेर लिया है</ref> लिलार<ref>ललाट</ref>, करब कब मूंडन हो॥1॥
झाड़ी<ref>झाड़कर</ref> बान्हू सम्हारि बान्हू, रामचंदर बाबू हो।
बाबू होएतऽ<ref>होगा</ref> दिन सुदिन, करब जगमूड़न हो॥2॥
बभना बोलायब बाबू, दिन गुनायब<ref>गणना करवाऊँगा</ref> हो।
पोथिया देखाएब तबे, करब जगमूड़न हो॥3॥
मचिया बैठल तोहें, कोसिला अम्माँ हे।
अम्माँ, लुपची छेंकल लिलार, होयत कब मूड़न हे॥4॥
झाड़ी बान्हू सम्हारि बान्हू, रामचंदर बाबू हो।
बाबू, होयत दिन सुदिन, करब जगमूड़न हो॥5॥
हजमा बोलायब, खूर<ref>उस्तुरा; छुरा</ref>, जगमूड़न हो॥6॥