भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सभ्यता / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
मैट्रो से देखा था पारी को
उसने मेरी पकी दाढ़ी देखी
और अपनी सीट से उठकर कहा:
यह सीट नीची है बैठ जाएँ वहाँ!
मैं उसकी सभ्यता का कद देखता रहा पारी में।