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सभ लुटेरा कहैये हमरा / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
भावक सुरूज ने चाही
ने कल्पित किरण चान कें
एहन आगि ने चाही हमरा
जे जरावय जान कें।
चान तिजोरी मे चमकै छथि
कानथि सुरूज गोदाम मे
कते‘ तरेगन तंग भेल छथि
तीन मंजिला दोकान मे
पीबि-पीबि कऽ मस्त बगल छी
मुदा ने शोणित आन कें
एहन आगि ने चाही हमरा
जे जरावय जान कें।
एहेन आगि जे चुल्हि पजारय
सुरूज खेत खरिहान मे
चानक किरण रिम-झिम बरिसय
हमरे बीय वान मे
सभ लुटेरा कहैये हमरा
लूटी ने इन्सान कें
एहन आगि ने चाही हमरा
जे जरावय जान कें
कतेक दिन रोटी लेल राधा
फंसती व्याधाक जाल मे
तन पर साड़ी एक बीत कें
जेना लपटल छाल मे।
ककरा कहबै के पतिएनै
मुनने छथि दूनू कान कें।
एहन आगि ने चाही हमरा
जे जरावय जान कें।