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समंदर पुर-सुकूँ है दिल का तुग़्यानी नहीं कोई / निकहत बरेलवी

समंदर पुर-सुकूँ है दिल का तुग़्यानी नहीं कोई
हवा पुर-शोर है लेकिन परेशानी नहीं कोई

तअज्जुब है तो बस अपनी वफ़ादारी के जज़्बे पर
हमे उस के बदले जाने पे हैरानी नहीं कोई

तसलसुल ख़्वाब-ए-ख़ुश-आसार का यूँ टूट जाने पर
तअस्सुफ़ है मगर ऐ दिल पशीमानी नहीं कोई

हम अपने आप ही के दर पए आज़ार रहते हैं
हमारा हम से बढ़ कर दुश्मन-ए-जानी नहीं कोई

इधर आने से पहले ही हमें मालूम था ‘निकहत’
ये वो रस्ता है जिस रस्ते में आसानी नहीं कोई