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समझता हूँ मैं सब कुछ / अख़्तर अंसारी
Kavita Kosh से
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
तड़पता हूँ मगर औरों को तड़पाना नहीं आता
ये जमुना की हसीं अमवाज क्यूँ अर्गन बजाती हैं
मुझे गाना नहीं आता मुझे गाना नहीं आता
ये मेरी ज़ीस्त ख़ुद इक मुस्तक़िल तूफ़ान है 'अख़्तर'
मुझे इन ग़म के तूफ़ानों से घबराना नहीं आता