समझते हो बड़ी आसानियाँ हैं
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ हैं
ज़रा सा वक़्त खुलने में लगेगा
मेरे अशआर में गहराइयाँ हैं
मेरी ख़ातिर नहीं फुरसत ज़रा भी
भला ऐसी भी क्या मजबूरियाँ हैं
मैं शाइर हूँ मेरे हिस्से की दौलत
फ़क़त ये दाद और ये तालियाँ हैं
मुकम्मल हो गयी है अपनी बाज़ी
‘अजय’ अब चलने की तैयारियाँ हैं