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समझदार होने में खोया / अंकित काव्यांश

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समझदार होने में खोया हमने भावुक मन

हँसता आँगन देख सँवरती नटखट चौखट
पुरखों की चौपालें जुमले और कहानी।
उलझन सुलझाने में माहिर दादी वाले
किस्सों में ही राह सुझाते राजा रानी।

लौट गए सब वापस अपने कथा लोक में
जाने क्या कुछ और ले गया अँधा पागलपन
समझदार होने में खोया हमने भावुक मन।

बिम्ब बनाना भूल गए अब नील गगन पर
सपनों की किरचन रह रह कर चुभती रहती।
अनचाहे संघर्षो तक थककर आ सिमटी
साँसों की लय काल-ताल को सहती सहती।

एक हिरन तो दूजे को बतला सकता था
कस्तूरी तेरे भीतर मत घूम अनेकों वन।
समझदार होने में खोया हमने भावुक मन।