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समझौता / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
एक भयानक चुप्पी छाई है समाज पर
शोर बहुत है पर सच्चाई से कतरा कर गुज़र रहा है
एक भयानक एका बाँधे है समाज को
कुछ न बदलने के समझौते का है एका
एक भयानक बेफ़िक्री है
पाठक अत्याचारों के क़िस्से पढ़ते हैं अख़बारों में
मगर आक्रमण के शिकार को पत्र नहीं लिखते हैं
सम्पादक के द्वारा
सभी संगठित दल विपक्ष के
अविश्वास प्रस्ताव के लिए जुट लेते हैं
एक भयानक समझौता है राजनीति में
हर नेता को एक नया चेहरा देना है ।