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समझ के बारे में / बैर्तोल्त ब्रेष्त / सुरेश सलिल

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कलाकारवृन्द, तुम जो चाहे-अनचाहे
अपने आपको दर्शकों के फ़ैसले के हवाले करते हो,
भविष्य में उतरो, ताकि जो दुनिया तुम दिखाओ
उसे भी दर्शकों के फ़ैसले के हवाले कर सको ।

जो है तुम्हें वही दिखाना चाहिए,
लेकिन जो है उसे दिखाते हुए तुम्हें
जो होना चाहिए और नहीं है, और जो राहतमन्द हो सकता है
उसकी ओर भी इशारा करना चाहिए,
ताकि तुम्हारे अभिनय से दर्शक
         अभिनीत चरित्र से बर्ताव करना सीख सकें।
इस सीखने-सिखाने को रोचक बनाओ,
सीखने-सिखाने का काम कलात्मक तरीके से होना चाहिए
और तुम्हें लोगों और चीज़ों के साथ बर्ताव करना भी
          कलात्मक तरीके से सिखाना चाहिए,
कला का अभ्यास सुखद होता है ।

तय मानो; तुम एक अन्धेरे वक़्त में रह रहे हो,
शैतानी ताक़तों द्वारा आदमी को फ़ुटबाल की तरह
          आगे-आगे उछाला जाता तुम देखते हो,
सिर्फ़ कोई जाहिल ही निश्चिंत रह सकता है,
जो संशयमुक्त हैं; उनकी तो पहले ही अधोगति बदी है,
हम शहरों में जो मुसीबतें झेलते है; उनकी तुलना में
इतिहास-पूर्व के मनहूस वक़्त के भूचाल क्या थे ?
विपुलता के बीच हमें बरबाद करती तंगहाली के बर‍अक्स
          ख़राब फ़सलें क्या थीं ?

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल